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होला मोहल्ला: वीरता, उमंग और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक पर्व |
Hola Mohalla: वीरता, उमंग और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक पर्व
(ब्यूरो चीफ अभय कुमार सिंह )
नैनी, प्रयागराज: भारतीय जनता पार्टी अल्पसंख्यक मोर्चा काशी क्षेत्र के क्षेत्रीय उपाध्यक्ष सरदार पतविंदर सिंह ने होला मोहल्ला पर्व के महत्व को बताते हुए कहा कि यह केवल रंगों और उत्साह का पर्व ही नहीं, बल्कि वीरता, साहस और सिख संस्कृति की जीवंत परंपरा का प्रतीक भी है। सिख समुदाय इस पर्व को होली के विशेष रूप में मनाता है, जिसकी शुरुआत गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1701 में की थी।
सिख सैन्य परंपरा का जीवंत उत्सव
सरदार पतविंदर सिंह ने बताया कि आनंदपुर साहिब (पंजाब) और नांदेड़ (महाराष्ट्र) में आयोजित होने वाले इस पर्व के दौरान निहंग सिखों द्वारा घुड़सवारी, तलवारबाजी और गतका का भव्य प्रदर्शन किया जाता है, जिससे सिखों की सैन्य परंपरा जीवंत रहती है।
उन्होंने बताया कि "होला" शब्द संस्कृत के "होलिका" से लिया गया है, जबकि "मोहल्ला" अरबी शब्द "महल्ला" से, जिसका अर्थ है संगठित जुलूस। इस परंपरा की शुरुआत आनंदपुर साहिब के निकट अगमपुर गांव में हुई थी, जहां सिख योद्धाओं ने अपने युद्ध कौशल का प्रदर्शन किया।
छह दिवसीय भव्य आयोजन
अबीर-गुलाल के साथ दी शुभकामनाएं
होला मोहल्ला पर्व के अवसर पर सभी श्रद्धालुओं ने गले मिलकर अबीर-गुलाल लगाकर एक-दूसरे को शुभकामनाएं दीं। इस अवसर पर ज्ञानी जसपाल सिंह, चरनजीत सिंह, हरजीत सिंह, सुरेंद्र सिंह, सुरजीत सिंह, मलकीत सिंह, लखबीर सिंह जग्गी, गुरुदीप सिंह सरना, परमजीत सिंह, सरदार पतविंदर सिंह, कुलदीप सिंह बग्गा, परमिंदर सिंह बंटी, मनु चावला, बलजीत सिंह, लखविंदर सिंह, राजेंद्र सिंह ग्रोवर, गुरबख्श सिंह, जसवीर सिंह, हरजीत सिंह कथुरिया, त्रिलोचन सिंह बग्गा, मनजीत सिंह खालसा, सतेंद्र सिंह पूरी सहित कई श्रद्धालु मौजूद रहे।
वीरता और भाईचारे का संदेश
होला मोहल्ला सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि सिख संस्कृति, वीरता और भाईचारे का जीवंत प्रतीक है। यह पर्व समाज को साहस, निडरता और एकता का संदेश देता है, जिसे देखने और अनुभव करने के लिए देश-विदेश से लोग यहां जुटते हैं।
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