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गाय माता को राज्य माता घोषित करने की मांग: कच्छ से उठी संतों की हुंकार, 10 दिन में निर्णय नहीं आया तो अनशन की चेतावनी

 

Cow as State Mother Demand Saints Protest

गाय माता को राज्य माता घोषित करने की मांग: कच्छ से उठी संतों की हुंकार, 10 दिन में निर्णय नहीं आया तो अनशन की चेतावनी

(डिजिटल मीडिया संपादक- बलराम वर्मा) 

गुजरात के कच्छ जिले में एक ऐतिहासिक पहल की शुरुआत हुई है। पूज्य संतों के एक प्रतिनिधिमंडल ने आज कच्छ कलेक्टर कार्यालय पहुंचकर एक गंभीर और भावनात्मक मुद्दे पर सरकार के नाम आवेदन पत्र सौंपा। इस आवेदन में गुजरात सरकार से मांग की गई है कि गौ माता को राज्य माता का दर्जा दिया जाए।

यह मांग केवल धार्मिक या भावनात्मक मुद्दा नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति, भारतीय जीवनशैली और पर्यावरण संतुलन से भी गहराई से जुड़ा है। इस पवित्र आंदोलन की अगुवाई स्वयं पूज्य MYogiDevnath  महाराज कर रहे हैं, जिनके नेतृत्व में सैकड़ों गौ भक्त, संत, सनातनी जन और गौ रक्षक भुज में एकत्र हुए।

आंदोलन का उद्देश्य: 'गौ माता' को मिले संवैधानिक संरक्षण

पूज्य संतो का स्पष्ट मत है कि भारत में जिस तरह बंगाल की मछली, पंजाब की धान और महाराष्ट्र की कपास को क्षेत्रीय पहचान मिली है, उसी प्रकार भारत के मूल प्रतीकों में से एक गौ माता को एक सशक्त संवैधानिक दर्जा मिलना चाहिए। गुजरात जैसे राज्य में जहां गौ सेवा, गोशालाएं और गौ संरक्षण को विशेष प्राथमिकता दी जाती रही है, वहाँ से यह मांग उठना एक निर्णायक संकेत है।

संत समाज का कहना है कि "गौ माता केवल एक पशु नहीं हैं, वह हमारी संस्कृति, आस्था और अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। दूध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र जैसे पंचगव्य उत्पादों से न केवल स्वास्थ्य लाभ होता है बल्कि हजारों परिवारों की आजीविका भी चलती है।"

कलेक्ट्रेट पर सौंपा गया मांग पत्र: 10 दिन की समयसीमा

आज सुबह भुज कलेक्ट्रेट पर पहुंचे संतों के जत्थे ने प्रशासन को एक 5 सूत्रीय मांग पत्र सौंपा, जिसमें मुख्य रूप से गौ माता को राज्य माता घोषित करने की मांग शामिल है। साथ ही इस आंदोलन को शांति और संविधानिक दायरे में रखते हुए आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता भी जताई गई।

मांग पत्र में यह स्पष्ट किया गया है कि यदि आने वाले 10 दिनों के भीतर सरकार की ओर से कोई ठोस जवाब नहीं आता या कार्यवाही शुरू नहीं होती, तो पूरे गुजरात सहित देशभर के संत, गौ रक्षक और सनातनी समाज के लोग अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठेंगे।

पूज्य योगी देवनाथ  का बयान: यह केवल धार्मिक मुद्दा नहीं, यह हमारी अस्मिता का प्रश्न है

इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे पूज्य Yogi Devnath ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा:

हमने सरकार से कोई असंभव या अराजक मांग नहीं की है। गौ माता को राज्य माता का दर्जा देने से पूरे समाज में एक सशक्त संदेश जाएगा कि भारत अपनी जड़ों से जुड़ रहा है। यदि सरकार हमारी इस न्यायोचित मांग को नजरअंदाज करती है, तो हम लोकतांत्रिक ढंग से अनशन और जन आंदोलन के मार्ग पर आगे बढ़ेंगे।"

संत समाज की एकजुटता और जन समर्थन

कच्छ के भुज में आज जो दृश्य देखने को मिला वह अद्वितीय था। श्वेत वस्त्रधारी साधु-संत, माथे पर तिलक, हाथ में भगवा ध्वज और "गौ माता की जय" के नारों से गूंजता परिसर यह दर्शाता है कि यह कोई क्षणिक लहर नहीं, बल्कि एक जन चेतना की लहर है।

इस आंदोलन को कच्छ, जामनगर, राजकोट, गांधीनगर, सूरत, वडोदरा और अहमदाबाद जैसे बड़े शहरों से भी समर्थन मिल रहा है। युवाओं, किसानों, महिलाओं और सामाजिक संगठनों ने भी इस आंदोलन को समर्थन दिया है।

संवैधानिक रूप से यह मांग कितनी व्यावहारिक?

संवैधानिक दृष्टि से किसी राज्य को यह अधिकार है कि वह किसी प्रतीक, जीव, पेड़ या अन्य तत्व को 'राज्य प्रतीक' घोषित कर सकता है। जैसे महाराष्ट्र में आम को राज्य फल, असम में एक सींग वाला गैंडा को राज्य पशु घोषित किया गया है, उसी तरह गुजरात में भी गौ माता को राज्य माता घोषित करना कानूनी रूप से संभव है।

यह निर्णय राज्य विधानसभा या मंत्रिमंडल के माध्यम से पारित कर लागू किया जा सकता है।

अब निर्णय सरकार के पाले में

अब सभी की निगाहें गुजरात सरकार पर टिकी हैं। क्या सरकार संतों की इस ऐतिहासिक और भावनात्मक मांग को स्वीकार करेगी? क्या गौ माता को वह दर्जा मिलेगा, जिसकी मांग सनातन युगों से होती आई है?

यदि सरकार समय रहते संवाद नहीं करती तो यह आंदोलन न केवल गुजरात में बल्कि देशभर में फैल सकता है। सनातनी समाज की यह हुंकार अब एक जन-जागरण में परिवर्तित हो चुकी है।

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