Gonda: कर्नलगंज में वन माफियाओं का आतंक, सागौन और प्रतिबंधित पेड़ों की दिनदहाड़े कटाई, जिम्मेदार मौन
(रा• मुख्य ब्यूरो चीफ अभय कुमार सिंह)
गोंडा
उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के कर्नलगंज क्षेत्र से पर्यावरणीय अपराध का एक बड़ा मामला सामने आया है। यहाँ के गोंडा-लखनऊ हाईवे के किनारे स्थित कर्नलगंज विद्युत उपकेंद्र से सटी जलमग्न सरकारी भूमि पर बड़े पैमाने पर हरे-भरे सागौन और प्रतिबंधित प्रजातियों के पेड़ों की अवैध कटाई हो रही है। पेड़ों की कटाई न सिर्फ प्रशासन की नाक के नीचे हो रही है, बल्कि स्थानीय पुलिस और वन विभाग की भूमिका भी संदेह के घेरे में आ गई है।
पर्यावरण को भारी नुकसान, शासन-प्रशासन के आदेशों की उड़ रही धज्जियाँ
स्थानीय लोगों के अनुसार, कर्नलगंज कोतवाली से महज कुछ कदम की दूरी पर स्थित क्षेत्र में बिना किसी अनुमति के पेड़ों को काटकर उन्हें ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में भरकर खुलेआम बाजारों और बाहर के इलाकों तक पहुंचाया जा रहा है। सबसे हैरानी की बात यह है कि ये वाहन पुलिस पिकेट और चौराहों से होकर बेखौफ गुजरते हैं, लेकिन कहीं कोई रोक-टोक नहीं होती।
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो में प्रतिबंधित सेमर और सागौन जैसे हरे पेड़ों की कटाई और लकड़ियों के खुलेआम परिवहन को साफ देखा जा सकता है। इस वीडियो के वायरल होने के बाद भी प्रशासन की ओर से अब तक कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई है।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि यह पूरा वन माफिया नेटवर्क ठेकेदारों, पुलिस और वन विभाग के कुछ भ्रष्ट अफसरों की मिलीभगत से चल रहा है। यह न सिर्फ पर्यावरणीय असंतुलन को बढ़ावा दे रहा है, बल्कि जंगलों और सरकारी भूमि की लूट भी बनता जा रहा है।
गर्मी, जल संकट और जलवायु परिवर्तन जैसी विकराल चुनौतियों के दौर में जब एक-एक पेड़ की अहमियत बढ़ गई है, ऐसे समय में सरकारी आदेशों और वन संरक्षण कानूनों की इस तरह से धज्जियाँ उड़ाना गंभीर चिंता का विषय बन गया है।
इस संबंध में जब वन विभाग के डीएफओ से बात की गई तो उन्होंने कहा कि उन्हें वायरल वीडियो की जानकारी नहीं है, लेकिन यदि ऐसा कुछ हुआ है तो जांच कर दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी।
प्रश्न यह उठता है कि जब अपराध कैमरे में कैद हो चुका है, जब सैकड़ों लोग इसे देख चुके हैं, जब शिकायतें हो रही हैं, फिर भी प्रशासन कब तक "जांच के बाद" वाली लकीर पीटता रहेगा?
क्या जंगलों की इस खुली लूट को रोकने के लिए अब शासन कोई ठोस कदम उठाएगा? या फिर वन माफियाओं का यह पर्यावरण विरोधी कारोबार यूं ही बेखौफ चलता रहेगा?
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