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बच्चों की सुरक्षा पर स्कूल प्रशासन क्यों उठाता है पल्ला? Education Ministry को देनी चाहिए सख्त हिदायतें

School Safety Children Education Ministry Guidelines

बच्चों की सुरक्षा पर स्कूल प्रशासन क्यों उठाता है पल्ला? Education Ministry को देनी चाहिए सख्त हिदायतें

(रिपोर्ट- ब्यूरो चीफ नरेंद्र कुमार)

लखनऊ, 12 जुलाई 2025 - आज के दौर में जब शिक्षा एक बड़ा उद्योग बन चुका है, स्कूल प्रशासन अभिभावकों से हर साल मोटी रकम फीस, एडमिशन चार्ज, डेवलपमेंट फंड और अन्य शुल्कों के रूप में वसूलते हैं। लेकिन जब बात किसी बच्चे की सेहत या सुरक्षा की आती है, तब यही स्कूल प्रशासन अपने कर्तव्यों से पल्ला झाड़ता नजर आता है।

यह सवाल न सिर्फ अभिभावकों के मन में उठ रहा है, बल्कि पूरे समाज के लिए चिंता का विषय बन चुका है, क्या किसी छात्र के घायल होने या बीमार पड़ने पर स्कूल की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती?

मामले को टालना क्यों बना आदत

कई मामलों में देखा गया है कि जब कोई बच्चा स्कूल में खेलते समय गिरकर चोटिल हो जाता है, या फिर किसी अन्य कारण से उसकी तबीयत बिगड़ जाती है, तो स्कूल प्रशासन उसे प्राथमिक उपचार देने की जगह सीधे घर भेज देता है। ऐसे में ना कोई मेडिकल सुविधा दी जाती है, ना समय पर पैरेंट्स को उचित जानकारी। कभी-कभी तो परिजनों को ये कहकर टाल दिया जाता है कि बच्चा ठीक है, घबराने की जरूरत नहीं।

फीस के नाम पर करोड़ों, फिर भी कोई जवाबदेही नहीं?

आज एक औसत निजी स्कूल प्रति छात्र सालाना ₹50,000 से ₹2,00,000 तक की फीस वसूलता है। इसमें इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर मेडिकल सुविधा तक का वादा किया जाता है। लेकिन जब कोई आपात स्थिति आती है, तो मेडिकल सुविधा का कहीं नामोनिशान तक नहीं होता।

एक अभिभावक का कहना है 

हम अपने बच्चों को शिक्षा के लिए नहीं, बल्कि सुरक्षित वातावरण के भरोसे स्कूल भेजते हैं। लेकिन जब स्कूल प्रशासन खुद ही जिम्मेदारी से भागने लगे, तो हमें डर लगने लगता है।

शिक्षा मंत्रालय की चुप्पी क्यों

अब सवाल उठता है कि क्या इस पर शिक्षा मंत्रालय की कोई भूमिका नहीं बनती? क्या यह जरूरी नहीं कि केंद्र और राज्य के शिक्षा विभाग सभी स्कूलों को निर्देश दें कि बच्चों की सेहत, सुरक्षा और आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए एक मजबूत व्यवस्था तैयार की जाए?

कई सामाजिक संगठनों और पैरेंट्स एसोसिएशनों ने इस विषय को लेकर आवाज उठाई है और मांग की है कि शिक्षा मंत्रालय ऐसे मामलों में सख्त दिशा-निर्देश जारी करे

  • प्रत्येक स्कूल में प्रशिक्षित नर्स और फर्स्ट एड की व्यवस्था अनिवार्य हो।
  • आपात स्थिति में तत्काल बच्चे को अस्पताल भेजने और अभिभावकों को सूचना देने की व्यवस्था सुनिश्चित हो।
  • यदि किसी छात्र को चोट लगती है या तबीयत बिगड़ती है, तो उसकी लिखित सूचना अभिभावकों को दी जाए और रिकॉर्ड रखा जाए।

समय है जवाबदेही तय करने का

स्कूल केवल ज्ञान का मंदिर नहीं, बल्कि बच्चों की जिम्मेदारी का केंद्र भी है। जब तक स्कूलों को यह एहसास नहीं कराया जाएगा कि बच्चों की सुरक्षा उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी है, तब तक ऐसी घटनाएं दोहराई जाती रहेंगी।

अब समय आ गया है कि शिक्षा मंत्रालय, राज्य शिक्षा विभाग और प्रशासनिक अधिकारी इस विषय पर गंभीरता से विचार करें और सभी स्कूलों को स्पष्ट निर्देश दें कि बच्चों की सुरक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ी किसी भी समस्या को नजरअंदाज करना अब किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

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