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पुलिस की निगरानी में संपन्न हुआ विवाह, लेकिन अधिकारिक मान्यता से वंचित – न्याय की दरकार |
Marriage Held Under Police Supervision: पुलिस की निगरानी में संपन्न हुआ विवाह, लेकिन अधिकारिक मान्यता से वंचित - न्याय की दरकार
(सीतापुर ब्यूरो चीफ रामसागर वर्मा)
सीतापुर, 25 मार्च 2025 - समाज में विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है, लेकिन जब यही बंधन कानूनी दांव-पेंच में उलझ जाए, तो सवाल उठना लाज़मी है। ऐसा ही एक मामला सीतापुर जनपद के बसंतीपुर गांव से सामने आया है, जहां सुशीला देवी और मनीष कुमार का विवाह तमाम साक्ष्यों और विधि-विधान के बावजूद अब तक आधिकारिक मान्यता नहीं पा सका है।
विवाह संपन्न, लेकिन अधर में अधिकार
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सूर्यकुंड मंदिर, थाना तालगांव |
इस विवाह में न सिर्फ दोनों पक्षों के परिवारजन और ग्रामीण मौजूद थे, बल्कि कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस उपनिरीक्षक प्रदीप सिंह की भी निगरानी रही।
विवाह की सभी रस्में दिलीप मिता द्वारा संपन्न कराई गईं और इस शुभ अवसर पर मौजूद गवाहों में कौशल वर्मा, सतीश वर्मा, विशाल गुरुस्वामी, दिलीप पंडित, राजू वर्मा, नीरज वर्मा, सुनौजवा नंदू, वीरपाल, परमानंद, महेश, सुनील देवी की भाभी सीमा व भाई अनिल कुमार समेत कई लोग शामिल थे।
ग्राम प्रधान ने विवाह को अस्वीकार किया
हालांकि, इतने साक्ष्यों और समाज की स्वीकृति के बावजूद, ग्राम प्रधान रविंद्र कुमार (ग्राम बसंतीपुर, थाना लहरपुर, जिला सीतापुर) ने विवाहिता सुशीला को अब तक विवाहिता के रूप में मान्यता नहीं दी है।
परिवार रजिस्टर में इस विवाह का कोई रिकॉर्ड दर्ज नहीं किया गया, जिससे सुशीला के अधिकारों पर संकट मंडरा रहा है।
न्याय की उम्मीद में विवाहिता
विवाहिता के अधिकारों पर सवाल उठाते हुए ग्रामीणों का कहना है कि जब विवाह पूरी कानूनी प्रक्रिया और सामाजिक रीति-रिवाजों के तहत संपन्न हुआ, तो इसे आधिकारिक मान्यता देने में देरी क्यों की जा रही है? क्या यह किसी प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा है, या फिर विवाहिता के अधिकारों को जानबूझकर कुचला जा रहा है?
प्रशासनिक हस्तक्षेप की आवश्यकता
इस मामले ने प्रशासन और कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। विवाहिता और उसके परिवार को उम्मीद है कि जिला प्रशासन जल्द से जल्द उचित कार्यवाही करेगा और विवाह को आधिकारिक मान्यता दिलाने में मदद करेगा।
अब देखना यह होगा कि क्या प्रशासन इस मामले को गंभीरता से लेकर आवश्यक हस्तक्षेप करेगा, या फिर यह मामला न्याय की आस में कानूनी उलझनों में उलझकर रह जाएगा?
समाज को जागरूक होने की जरूरत
यह मामला सिर्फ सुशीला देवी और मनीष कुमार तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज में विवाहिता के अधिकारों को लेकर एक बड़ा संदेश देता है। जब कोई विवाह सभी वैधानिक और सामाजिक मानकों को पूरा करता है, तो उसे कानूनी मान्यता मिलने में कोई अड़चन नहीं होनी चाहिए।
ऐसे मामलों में सरकारी विभागों और ग्राम पंचायतों की जवाबदेही तय होनी चाहिए ताकि किसी विवाहिता को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष न करना पड़े। अगर समय रहते प्रशासन हस्तक्षेप करता है, तो यह न सिर्फ सुशीला देवी के हक में होगा, बल्कि समाज के लिए एक सकारात्मक संदेश भी होगा।
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