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Shrimad Bhagwat Katha: छतार गांव में श्रीमद्भागवत कथा का भव्य समापन

Grand Conclusion of the Shrimad Bhagwat Katha in Chhatar Village

Shrimad Bhagwat Katha: छतार गांव में श्रीमद्भागवत कथा का भव्य समापन

(ब्यूरो रिपोर्ट - सुनील कुमार त्रिपाठी )

प्रतापगढ़ जनपद के बाघराय तहसील अंतर्गत छतार गांव में आयोजित सप्ताहव्यापी श्रीमद्भागवत कथा का समापन श्रद्धा, भक्ति और आध्यात्मिक उल्लास के साथ संपन्न हुआ। अंतिम दिवस की कथा में राजा परीक्षित के मोक्ष का भावपूर्ण वर्णन किया गया, जिसे सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भक्तिभाव से श्रवण किया।

राजा परीक्षित की मोक्ष कथा ने दिया आध्यात्मिक संदेश

कथा वाचक ने राजा परीक्षित के जीवन, श्राप व मोक्ष प्राप्ति की कथा को अत्यंत सरल, सारगर्भित एवं मार्मिक शैली में प्रस्तुत किया। कथा श्रवण के दौरान श्रद्धालुओं की आंखें जहां भक्ति से नम थीं, वहीं मन आध्यात्मिक शांति से परिपूर्ण था। मोक्ष प्रसंग के माध्यम से जीवन में धर्म, संयम और सत्संग के महत्व पर विशेष बल दिया गया।

श्रीकृष्ण-सुदामा मिलन की झांकी बनी आयोजन की आत्मा

इस अवसर पर प्रस्तुत श्रीकृष्ण-सुदामा मिलन की झांकी ने समूचे आयोजन को जीवंतता प्रदान की। झांकी में साकार रूप से सुदामा की विनम्रता और श्रीकृष्ण की करुणा को दर्शाया गया, जिसने सभी दर्शकों को भावविभोर कर दिया। भक्ति रस से सराबोर यह प्रस्तुति आयोजन की आत्मा बन गई।

गणमान्यजनों की उपस्थिति से बढ़ी आयोजन की गरिमा

इस पावन अवसर पर क्षेत्र के अनेक गणमान्यजन उपस्थित रहे, जिनमें विशेष रूप से गणेश शुक्ला (पूर्व प्रधान), श्याम मूर्ति शुक्ल, शिव मूर्ति शुक्ल, कृष्ण मूर्ति शुक्ल, सुनील कुमार शुक्ल, विकास शुक्ल, विवेक शुक्ल, अमित शुक्ल, सुमित शुक्ल, प्रिंस शुक्ल, हनी शुक्ल, शुभ शुक्ल, सौम्य शुक्ल, राघव शुक्ल व कान्हा शुक्ल का नाम उल्लेखनीय रहा। इन सभी की सक्रिय भागीदारी से कार्यक्रम की गरिमा और भव्यता और अधिक बढ़ गई।

भजन, हवन व प्रसाद वितरण के साथ हुआ समापन

कार्यक्रम के समापन पर सामूहिक हवन-पूजन का आयोजन किया गया, जिसमें श्रद्धालुओं ने आहुति अर्पित कर क्षेत्र की सुख-समृद्धि की कामना की। तत्पश्चात भजन-कीर्तन की मधुर स्वर लहरियों के बीच श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित किया गया।

सामाजिक एकता और सांस्कृतिक समरसता का अद्भुत संगम

इस सात दिवसीय धार्मिक आयोजन ने गांव को भक्ति, सेवा और सामाजिक एकता के सूत्र में पिरो दिया। आयोजकों और ग्रामीणों ने इसे सांस्कृतिक विरासत के रूप में संजोने की बात कही और यह संकल्प लिया कि यह परंपरा आने वाले वर्षों में और भी व्यापक रूप में निभाई जाएगी।


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