मई दिवस पर प्रतीक फाउंडेशन द्वारा भव्य काव्यपाठ एवं पुस्तक चर्चा का आयोजन
ब्यूरो: सुनील कुमार त्रिपाठी
बांदा: मई दिवस के पावन अवसर पर प्रतीक फाउंडेशन के तत्वावधान में एक सांस्कृतिक और साहित्यिक आयोजन का भव्य आयोजन किया गया, जिसमें देशभर से आईं महिला साहित्यकारों, कवयित्रियों और लेखिकाओं ने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई।
कार्यक्रम की शुरुआत राजकीय महिला डिग्री कॉलेज की छात्राओं द्वारा प्रस्तुत समूह नृत्य से हुई, जो प्रख्यात कवि बाबू केदारनाथ अग्रवाल की कालजयी रचना बसंती हवा हूं.. पर आधारित था।
कार्यक्रम में विशेष आकर्षण रहीं बस्तर से पधारी चर्चित कवयित्री पूनम वासम, जिन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से आदिवासी जीवन, स्त्री संघर्ष और प्रकृति से जुड़े गहरे सरोकारों को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया। उनकी कविताएं धान रोपना एक कला है, शहीद मंगली के लिए, नमक हमेशा नमकीन नहीं होता, और आमचो महाप्रभु मारलो ने श्रोताओं को गहरे तक प्रभावित किया।
पुस्तक चर्चा सत्र में चर्चित लेखिकाएं डॉ. सबीहा रहमानी और श्रद्धा निगम की कृतियों वेगुनाहगार औरतें तथा बंद दरवाजे और खिड़कियां पर डॉ. उमा राग ने महत्वपूर्ण वक्तव्य दिया। उन्होंने पितृसत्ता की संरचना, महिला अस्मिता, और सामाजिक विसंगतियों पर विमर्श करते हुए गहन दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम में मयंक खरे ने अपनी कविता गमपुर के लोग के माध्यम से ग्रामीण जीवन और संवेदनाओं की नब्ज को छूने वाले साहित्य की आवश्यकता पर बल दिया।
कार्यक्रम का संचालन स्वयं डॉ. सबीहा रहमानी ने कुशलता से किया। इस अवसर पर श्रद्धा निगम, अंजू, अखिलेश श्रीवास्तव चमन, जवाहर लाल जलज, सुधीर सिंह, लायक सिंह, महिला डिग्री कॉलेज की छात्राएं एवं शिक्षकगण तथा शहर के अनेक साहित्यप्रेमी और बुद्धिजीवी नागरिक उपस्थित रहे।
मई दिवस की यह संध्या महिला साहित्य की सशक्त उपस्थिति और श्रम की गरिमा को रेखांकित करती एक यादगार सांस्कृतिक पहल साबित हुई।
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