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UPSRTC में ड्राइवरों की भारी कमी, भर्ती प्रक्रिया पर उठे सवाल |
UPSRTC में ड्राइवरों की भारी कमी, भर्ती प्रक्रिया पर उठे सवाल
(ब्यूरो चीफ रामसागर वर्मा)
उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (UPSRTC) इन दिनों गंभीर संकट से गुजर रहा है। सबसे बड़ी समस्या है चालकों की भारी कमी, जिसके कारण नई बसें डिपो में खड़ी धूल फांक रही हैं। सरकार द्वारा विभिन्न जिलों को दी गईं नई बसें बिना चालकों के बेकार पड़ी हैं, जिससे यात्री सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं।
सुल्तानपुर डिपो का हाल
सुल्तानपुर डिपो इसका जीता-जागता उदाहरण है। यहां 20 नई बसें आवंटित की गईं, लेकिन चालकों की कमी के कारण केवल एक बस ही डिपो तक पहुंच सकी। बाकी 19 बसें अभी भी चालकों का इंतजार कर रही हैं। डिपो में कुल 82 निगमित और 62 अनुबंधित बसें हैं, लेकिन पर्याप्त चालक न होने से परिवहन सेवाएं ठप होने की कगार पर हैं।
भर्ती के प्रयास और चुनौतियां क्या हैं
विभाग चालकों की भर्ती के लिए ब्लॉक स्तर पर रोजगार मेलों का आयोजन कर रहा है। पहले चरण में 56 चालकों का चयन हुआ है, लेकिन उनकी अंतिम नियुक्ति कानपुर में होने वाले दूसरे टेस्ट के बाद ही होगी। अभी छह ब्लॉकों में मेले आयोजित होने बाकी हैं, जिससे कुछ उम्मीदें जगी हैं। फिर भी, भर्ती प्रक्रिया की जटिलता और देरी से समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा।
चालकों की परेशानियां
हमारी टीम ने विभिन्न डिपो का दौरा कर चालकों से बात की। हालांकि कोई भी खुलकर बोलने को तैयार नहीं हुआ, लेकिन गुमनामी की शर्त पर कई चालकों ने अपनी पीड़ा साझा की। उनके अनुसार, युवा चालक नौकरी छोड़कर भाग रहे हैं या आवेदन करने से कतरा रहे हैं। इसके पीछे कई कारण हैं:
- डीजल रिकवरी: चालकों से डीजल खपत का हिसाब वसूला जाता है।
- वाहन क्षति पर कटौती: गाड़ी में छोटी-मोटी खरोंच पर भी वेतन से राशि काटी जाती है।
- अधिकारी दबाव: अधिकारियों का डर और दबंगई भरा रवैया।
- कम वेतन, ज्यादा काम: भारी कार्यभार के बावजूद वेतन अपर्याप्त है।
पूरे प्रदेश में संकट
यह समस्या सिर्फ सुल्तानपुर तक सीमित नहीं है। लखनऊ, गोरखपुर, कानपुर, प्रयागराज, मेरठ और आगरा जैसे बड़े डिपो भी चालकों की कमी से जूझ रहे हैं। नई बसें डिपो में खड़ी हैं, लेकिन उन्हें चलाने वाला कोई नहीं है। इससे यात्रियों को परेशानी हो रही है और निजी परिवहन पर निर्भरता बढ़ रही है।
क्या है समाधान
इस संकट से निपटने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
- सरल भर्ती प्रक्रिया: चालक भर्ती को पारदर्शी और आसान बनाया जाए।
- अनावश्यक रिकवरी पर रोक: डीजल और वाहन क्षति की वसूली पर नियंत्रण हो।
- विकेन्द्रीकृत प्रशिक्षण: टेस्टिंग और प्रशिक्षण की प्रक्रिया को जिला स्तर पर आयोजित किया जाए।
- चालकों का सम्मान: चालकों को उचित वेतन, सुरक्षा और स्थायी नौकरी का भरोसा दिया जाए।
जब तक चालकों को सम्मान, सुरक्षा और स्थायित्व नहीं मिलेगा, तब तक यूपी रोडवेज की रफ्तार सुस्त रहेगी। यह संकट न केवल परिवहन सेवाओं को प्रभावित कर रहा है, बल्कि आम जनता को भी भारी असुविधा झेलनी पड़ रही है। यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह समस्या और गंभीर हो सकती है।
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