Prayagraj को मिला 'सर्वश्रेष्ठ गंगा शहर' का खिताब: स्वच्छता की ऐतिहासिक पहचान, सरदार पतविंदर सिंह के संकल्प को सलाम
(ब्यूरो चीफ सुनील त्रिपाठी )
प्रयागराज - गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर बसा प्रयागराज एक बार फिर चर्चा में है। इस बार वजह है गर्व और सम्मान की, स्वच्छ भारत मिशन के तहत आयोजित स्वच्छ सर्वेक्षण-2025 में प्रयागराज को 'सर्वश्रेष्ठ गंगा शहर' का खिताब मिला है। यह उपलब्धि न केवल प्रशासन की कार्यशैली की पहचान है, बल्कि उन सभी निस्वार्थ समाजसेवियों की तपस्या का फल है जो वर्षों से शहर को स्वच्छ, सुंदर और सांस्कृतिक रूप से सशक्त बनाने में लगे हैं।
महापौर गणेश चंद्र केशरवानी को मिले तीन प्रतिष्ठित अवार्ड
दिल्ली में आयोजित एक भव्य समारोह में प्रयागराज नगर निगम के महापौर गणेश चंद्र केशरवानी को तीन प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। यह सम्मान इस बात का प्रतीक है कि शहर में स्वच्छता को केवल अभियान के रूप में नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और धार्मिक जिम्मेदारी के रूप में अपनाया गया है।
महापौर ने इस मौके पर नगर निगम के सभी कर्मचारियों, सफाईकर्मियों, समाजसेवियों और प्रयागराज की जनता को श्रेय देते हुए कहा, “यह पुरस्कार केवल मेरी नहीं, बल्कि प्रयागराज की हर उस आत्मा की विजय है जो गंगा को मां मानती है और शहर को मंदिर की तरह पवित्र रखने का संकल्प करती है।”
गंगा तट के प्रहरी: सरदार पतविंदर सिंह का अनूठा संकल्प
स्वच्छता की इस उपलब्धि के पीछे कई अनकहे नायकों की भूमिका रही है। उनमें से एक हैं सरदार पतविंदर सिंह, जो पिछले 35 वर्षों से कुंभ, अर्धकुंभ, माघ मेला और अब महाकुंभ में भिक्षाटन के रूप में स्वच्छता का संकल्प मांगते आ रहे हैं। न पैसे की चाह, न नाम का लोभ सिर्फ एक मांग: गंगा और यमुना के तटों को स्वच्छ रखें।
भिक्षा नहीं, संकल्प चाहिए
महाकुंभ में श्रद्धालु जब तटों पर स्नान करने आते हैं, तो सरदार पतविंदर सिंह उन्हें रोकते नहीं, बल्कि एक प्लेकार्ड दिखाते हैं और कहते हैं कि मुझे धन नहीं चाहिए, गंगा की शुद्धता का वचन दो। यही उनका अभियान है, यही उनका तप।
उनका कहना है:
गंगा-यमुना हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं। जब तक इनका जल निर्मल नहीं होगा, तब तक हमारे मन भी निर्मल नहीं होंगे।
35 वर्षों से स्वच्छता का मौन यज्ञ
सरदार पतविंदर सिंह अकेले नहीं हैं। उनके साथ समर्पित युवाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं की एक टोली है, जो मेला क्षेत्र में घूम-घूमकर लोगों को समझाती है कि गुटखा मत खाओ, पान न थूकें, प्लास्टिक न फैलाएं, गंगा को गंदा न करें।
उनके प्लेकार्डों पर लिखे होते हैं प्रेरणादायक नारे:
- गंगा में पवित्रता, जीवन में शुभता
- तट पर स्वच्छता, श्रद्धा की सच्ची परीक्षा
- पैसा नहीं, संकल्प दो – गंगा को साफ रखो
इन नारों में न दिखावा है, न राजनीतिक रंग - सिर्फ भावनात्मक अपील।
मेला क्षेत्र में अनूठी पहल
महाकुंभ की इस भीड़ में जहां लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से आते हैं, वहीं सरदार पतविंदर सिंह अपने संकल्प पथ से नहीं डिगते। वे हर घाट, हर तंबू और हर पथिक से एक ही आग्रह करते हैं कि गंगा को मां मानकर व्यवहार करें, उसे नाली न बनाएं।
उनकी प्रेरणा से कई श्रद्धालु न केवल गुटखा, पान, तंबाकू छोड़ते हैं, बल्कि अपने बच्चों को भी गंगा के प्रति संवेदनशील बनाते हैं।
सफाईकर्मियों की मेहनत रंग लाई
यह सम्मान केवल एक व्यक्ति या संस्था की मेहनत से संभव नहीं हुआ। प्रयागराज के हजारों सफाईकर्मियों ने दिन-रात एक कर शहर को स्वच्छ बनाए रखा।
धार्मिक चेतना और स्वच्छता का संगम
प्रयागराज हमेशा से धर्म और आस्था की भूमि रही है। लेकिन अब यह शहर स्वच्छता और सामाजिक चेतना का प्रतीक भी बन गया है।
सरदार पतविंदर सिंह ने अपने संदेश में लोगों से आग्रह किया -
धर्म की नगरी में नशे का कोई स्थान नहीं। तंबाकू, पान, गुटखा से दूर रहें, यह मां गंगा का अपमान है।
निष्कर्ष
प्रयागराज का ‘सर्वश्रेष्ठ गंगा शहर’ बनना केवल एक ट्रॉफी या पुरस्कार नहीं, बल्कि उस पुरातन संस्कृति की पुनर्प्रतिष्ठा है, जहां जल को जीवन और गंगा को माता माना जाता है।
सरदार पतविंदर सिंह जैसे कर्मयोगियों को सलाम, जिन्होंने बिना किसी प्रचार, बिना किसी लाभ के 35 वर्षों से गंगा की स्वच्छता के लिए संकल्प यज्ञ किया।
यह सम्मान प्रयागराज के लिए एक स्वर्णिम अध्याय की शुरुआत है – जहां श्रद्धा, सेवा और स्वच्छता का संगम बना है।
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