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School की छत गिरी, 7 मासूमों की मौत: शासन-प्रशासन की लापरवाही पर सवाल

School Roof Collapse Government Negligence
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School की छत गिरी, 7 मासूमों की मौत: शासन-प्रशासन की लापरवाही पर सवाल

(डिजिटल मीडिया संपादक बलराम वर्मा) 

स्थान: पिपलोदी गांव, मनोहर थाना, झालावाड़ जिला (राजस्थान)

तारीख: 25 जुलाई 2025

राजस्थान के झालावाड़ जिले के मनोहर थाना क्षेत्र के पिपलोदी गांव में 25 जुलाई 2025 की सुबह एक दिल दहला देने वाला हादसा हुआ, जिसने पूरे क्षेत्र को शोक और आक्रोश में डुबो दिया। एक सरकारी स्कूल की जर्जर छत अचानक ढह गई, जिसके मलबे में करीब 60 से अधिक बच्चे दब गए। 

इस दुखद हादसे में अब तक 7 मासूम बच्चों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जबकि 30 से अधिक बच्चे घायल बताए जा रहे हैं। घायलों को तत्काल मनोहर थाना सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) और झालावाड़ जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां कुछ बच्चों की हालत अब भी गंभीर बनी हुई है।

इस हादसे ने न केवल पिपलोदी गांव, बल्कि पूरे देश में शिक्षा व्यवस्था और सरकारी स्कूलों की बदहाल स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। स्थानीय लोगों और मृतक बच्चों के परिजनों का गुस्सा शासन-प्रशासन के खिलाफ फूट पड़ा है। उनका कहना है कि यह हादसा नहीं, बल्कि लापरवाही का परिणाम है, जिसे "हत्या" की संज्ञा दी जा रही है।

हादसे का दर्दनाक मंजर

25 जुलाई की सुबह पिपलोदी गांव का सरकारी स्कूल बच्चों की चहल-पहल से गुलज़ार था। बच्चे अपनी कक्षाओं में पढ़ाई कर रहे थे, तभी अचानक स्कूल की छत भरभराकर ढह गई। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, हादसा इतना भयावह था कि कुछ ही पलों में पूरा स्कूल मलबे के ढेर में तब्दील हो गया। 

बच्चों की चीख-पुकार और धूल के गुबार ने पूरे गांव को हिलाकर रख दिया। स्थानीय लोग तुरंत बचाव कार्य में जुट गए। कुछ बच्चों को ग्रामीणों ने मलबे से निकाला, लेकिन कई बच्चे गंभीर रूप से घायल हो चुके थे।

हादसे की सूचना मिलते ही पुलिस और प्रशासन की टीमें मौके पर पहुंचीं। बचाव कार्य में एनडीआरएफ की टीम को भी लगाया गया। घायल बच्चों को तुरंत नजदीकी अस्पतालों में पहुंचाया गया, लेकिन 7 बच्चों ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। मृतक बच्चों की उम्र 8 से 12 साल के बीच बताई जा रही है।

जर्जर इमारत और अनदेखी की कहानी

हादसे के बाद सामने आया कि स्कूल की इमारत कई वर्षों से जर्जर हालत में थी। दीवारों में दरारें थीं और छत से बार-बार मलबा गिरने की शिकायतें सामने आ चुकी थीं। बच्चों और अभिभावकों ने कई बार स्कूल प्रबंधन और स्थानीय प्रशासन को इसकी सूचना दी थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।

एक स्थानीय निवासी, रामलाल, ने गुस्से में कहा, "हमने कई बार स्कूल की हालत को लेकर शिकायत की थी। बच्चों ने भी बताया था कि छत से मलबा गिरता है, लेकिन किसी ने नहीं सुना। आज हमारे बच्चे इस लापरवाही की कीमत चुका रहे हैं।"

ग्रामीणों का कहना है कि स्कूल की इमारत को कई साल पहले बनाया गया था, और तब से इसकी कोई खास मरम्मत या रखरखाव नहीं किया गया। बारिश और मौसम की मार ने इमारत को और कमजोर कर दिया था। इसके बावजूद, स्कूल में नियमित कक्षाएं चल रही थीं, जो प्रशासन की गैर-जिम्मेदारी को उजागर करता है।

आक्रोश और सवाल

हादसे के बाद पिपलोदी गांव में गम और गुस्से का माहौल है। मृतक बच्चों के परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है। गांव के लोग प्रशासन के खिलाफ सड़कों पर उतर आए और नारेबाजी की। उनका कहना है, "यह हादसा नहीं, बल्कि हत्या है। अगर समय रहते इमारत की मरम्मत कर दी जाती, तो हमारे बच्चों की जान बच सकती थी।"

स्थानीय लोग और सामाजिक कार्यकर्ता इस हादसे को सरकारी स्कूलों की बदहाल स्थिति का प्रतीक मान रहे हैं। राजस्थान के कई ग्रामीण इलाकों में सरकारी स्कूल जर्जर हालत में हैं, जहां न तो पर्याप्त बुनियादी ढांचा है और न ही बच्चों की सुरक्षा के लिए कोई ठोस इंतजाम। 

सामाजिक कार्यकर्ता मीना शर्मा ने कहा, "यह सिर्फ पिपलोदी की समस्या नहीं है। पूरे राज्य में सरकारी स्कूलों की हालत खराब है। सरकार शिक्षा के नाम पर बजट तो देती है, लेकिन वह जमीनी स्तर तक नहीं पहुंचता।"

प्रशासन का रवैया और कार्रवाई

हादसे के बाद प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई करते हुए 5 शिक्षकों को निलंबित कर दिया है। इसके साथ ही सरकार ने इस मामले की उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए हैं। 

जिला कलेक्टर ने कहा, "हम इस मामले की गहन जांच कर रहे हैं। दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।" घायल बच्चों के इलाज के लिए विशेष चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने और मृतक बच्चों के परिवारों को मुआवजा देने की घोषणा भी की गई है।

हालांकि, ग्रामीणों का कहना है कि यह कार्रवाई महज दिखावा है। एक अभिभावक ने गुस्से में कहा, "सस्पेंशन और जांच से क्या होगा? हमारे बच्चे तो चले गए। क्या सरकार उनकी जिंदगी लौटा सकती है?"

शिक्षा व्यवस्था पर सवाल

यह हादसा केवल पिपलोदी गांव तक सीमित नहीं है। यह पूरे देश में सरकारी स्कूलों की बदहाल स्थिति और प्रशासनिक लापरवाही की तस्वीर पेश करता है। भारत में शिक्षा को मौलिक अधिकार माना जाता है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों की स्थिति बद से बदतर है। जर्जर भवन, अपर्याप्त शिक्षक, और बुनियादी सुविधाओं का अभाव बच्चों के भविष्य को खतरे में डाल रहा है।

हाल के आंकड़ों के अनुसार, राजस्थान में हजारों सरकारी स्कूल जर्जर इमारतों में चल रहे हैं। कई स्कूलों में न तो शौचालय हैं, न पीने का पानी, और न ही पर्याप्त कक्षाएं। ऐसे में बच्चों की सुरक्षा और शिक्षा दोनों ही दांव पर हैं।

आगे की राह

इस हादसे ने सरकार और समाज के सामने कई सवाल खड़े किए हैं। पहला, सरकारी स्कूलों की जर्जर इमारतों की मरम्मत और रखरखाव के लिए ठोस कदम कब उठाए जाएंगे? दूसरा, प्रशासनिक लापरवाही को रोकने के लिए जवाबदेही कैसे सुनिश्चित की जाएगी? और तीसरा, बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता देने के लिए शिक्षा बजट का सही उपयोग कैसे होगा?

इस हादसे ने एक बार फिर यह साबित किया है कि केवल घोषणाओं और जांच समितियों से समस्याएं हल नहीं होंगी। जरूरत है एक ऐसी व्यवस्था की, जहां बच्चों की सुरक्षा और शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए। 

सरकार को चाहिए कि वह तत्काल प्रभाव से सभी जर्जर स्कूलों का सर्वे कराए और उनकी मरम्मत या पुनर्निर्माण के लिए विशेष बजट आवंटित करे। साथ ही, स्कूल प्रबंधन और स्थानीय प्रशासन की जवाबदेही तय करने के लिए सख्त नियम बनाए जाएं।

निष्कर्ष

पिपलोदी गांव का यह हादसा एक त्रासदी है, जिसने 7 मासूम जिंदगियों को छीन लिया और कई परिवारों को गहरे दुख में डुबो दिया। यह हादसा हमें याद दिलाता है कि बच्चों का भविष्य केवल किताबों और कक्षाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि उनकी सुरक्षा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। सरकार, प्रशासन, और समाज को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसा हादसा दोबारा न हो।

मृतक बच्चों की आत्मा को शांति मिले, और घायल बच्चे जल्द स्वस्थ हों। यह समय केवल शोक मनाने का नहीं, बल्कि जागने और बदलाव लाने का है।

डिस्क्लेमर

यह लेख स्थानीय समाचार रिपोर्ट्स, प्रशासनिक बयानों, और मीडिया कवरेज पर आधारित है। मृतकों और घायलों की संख्या में बदलाव संभव है। सटीक जानकारी के लिए सरकारी स्रोतों या अधिकृत समाचार पोर्टलों की पुष्टि करें।

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